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यस्मै॒ त्वं सु॒कृते॑ जातवेद उ लो॒कम॑ग्ने कृ॒णवः॑ स्यो॒नम्। अ॒श्विनं॒ स पु॒त्रिणं॑ वी॒रव॑न्तं॒ गोम॑न्तं र॒यिं न॑शते स्व॒स्ति ॥११॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yasmai tvaṁ sukṛte jātaveda u lokam agne kṛṇavaḥ syonam | aśvinaṁ sa putriṇaṁ vīravantaṁ gomantaṁ rayiṁ naśate svasti ||

पद पाठ

यस्मै॑। त्वम्। सु॒ऽकृते॑। जा॒त॒ऽवे॒दः। ऊँ॒ इति॑। लो॒कम्। अ॒ग्ने॒। कृ॒णवः॑। स्यो॒नम्। अ॒श्विन॑म्। सः। पु॒त्रिण॑म्। वी॒रऽव॑न्तम्। गोऽम॑न्तम्। र॒यिम्। न॒श॒ते॒। स्व॒स्ति ॥११॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:4» मन्त्र:11 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:19» मन्त्र:6 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (जातवेदः) बुद्धि से युक्त (अग्ने) विद्वन् (त्वम्) आप (यस्मै) जिस (सुकृते) धर्मात्मा के लिये (स्योनम्) सुख का कारण (लोकम्) देखने योग्य (कृणवः) करते हो (सः, उ) वही (अश्विनम्) अच्छे घोड़े आदि पदार्थों (पुत्रिणम्) अच्छे पुत्रों (वीरवन्तम्) बहुत वीरों तथा (गोमन्तम्) बहुत गौ आदिकों के सहित (स्वस्ति) सुखस्वरूप (रयिम्) धन को (नशते) प्राप्त होता है ॥११॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! जो आप विद्या और विनय से प्रजाओं को पुत्र आदि ऐश्वर्य्यों से युक्त करें तो ये प्रजायें आपका अति सत्कार करें ॥११॥ इस सूक्त में राजा और प्रजा के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह चौथा सूक्त और उन्नीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे जातवेदोऽग्ने ! त्वं यस्मै सुकते स्योनं लोकं कृणवः स उ अश्विनं पुत्रिणं वीरवन्तं गोमन्तं स्वस्ति रयिं नशते ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्मै) (त्वम्) (सुकृते) धर्मात्मने (जातवेदः) जातप्रज्ञ (उ) (लोकम्) द्रष्टव्यम् (अग्ने) विद्वन् (कृणवः) करोषि (स्योनम्) सुखकारणम् (अश्विनम्) प्रशस्ताश्वादियुक्तम् (सः) (पुत्रिणम्) प्रशस्तपुत्रयुक्तम् (वीरवन्तम्) बहुवीराढ्यम् (गोमन्तम्) बहुगवादिसहितम् (रयिम्) धनम् (नशते) प्राप्नोति (स्वस्ति) सुखमयम् ॥११॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! यदि भवान् विद्याविनयाभ्यां प्रजाः पुत्राद्यैश्वर्ययुक्ताः कुर्यात् तर्हीमाः प्रजा भवन्तमतिमन्येरन्निति ॥११॥ अत्र राजप्रजागुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति चतुर्थं सूक्तमेकोनविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा ! जर तू विद्या व विनयाने प्रजेला ऐश्वर्याने युक्त केलेस तर प्रजा तुझा सत्कार करील. ॥ ११ ॥